मुझसे कहा गया कि संसद ,
देश की धड़कन को प्रतिबिंबित करने वाला
दर्पण है, जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है
लेकिन क्या यह सच है?
या यह सच है कि
अपने यहां संसद तेली की वह घानी है,
जिसमें आधा तेल है और आधा पानी है.
और यदि यह सच नहीं है
तो यहां एक ईमानदार आदमी को
अपनी ईमानदारी का मलाल क्यों है?
जिसने सत्य कह दिया है
उसका बुरा हाल क्यों है?
No comments:
Post a Comment