सुदामा पांडेय 'धूमिल'

सुदामा पांडेय 'धूमिल'

Wednesday, April 14, 2021

देश के प्रति

बचपन में सुना था कि सोने कि चिड़िया

था मेरा देश।  अपने देश को मैं प्यार करता हूँ।

चिड़िया उड़ती है और आकाश में फेरा लगाती है

मेरे देश का घोंसला है मेरा ह्रदय।

मैं अपने देश को

प्यार करता हूँ।

 

जब मैं सयान हुआ मैंने पाया कि मिट्टी का

माधो है मेरा देश।  मैं अपने देश को प्यार करता हूँ।

 

खेत की मेड़ के लिए

लड़ते किसान की बीच

मैं घायल होता हूँ

अपने मिट्टी के माधो को बांहों में थामकर

रोता हूँ

 

लेकिन जब लहकती फसलों का संगीत

खेतों में बजता है।

मेरी कविता में,

खून में बजता है एक राग

जो मुझे आदमी बनता है।

मुझमें जलती रहती है एक आग

जो  मुझे जिन्दा रखती है।  यह देश की

जगाई हुई आग है।

 

मैं  अपने देश को प्यार करता हूँ।

 

मैं ऐसा विभोर कि नहीं जानताकब मेरी कोई

कविता पहाड़ गाने लगेगी और कब

कोई नद।  मैं नहीं जानता लेकिन

मेरा देश जानता है कि

नेकी और बदी  

एक कवि के लिए यात्रा है

जीवन की।

 

मैं अपने देश को प्यार करता हूँ।

 

मेरा देश

मेरे लिए रास्ता है।

जो भविष्य की वादी में

खुलता है। 

  

Tuesday, April 6, 2021

खेवली

वहाँ  जंगल है  जनतंत्र

भाषा और गूँगेपन के बीच कोई

दूरी नहीं है।

एक ठंडी और गाँठदार अंगुली माथा टटोलती है।

सोच में डूबे हुए चेहरों और

वहां दरकी हुई ज़मीन में

कोई फ़र्क नहीं हैं।

 

वहाँ कोई सपना नहीं है।  भेड़िये का डर।

बच्चों को सुलाकर औरतें खेत पर चली गई हैं।

खाये जाने लायक कुछ भी शेष नहीं है।

वहाँ सब कुछ सदाचार की तरह सपाट

और ईमानदारी की तरह असफल है।

 

हायइसके बाद

करम जले भाइयों के लिए जीने का कौन-सा उपाय

शेष रह जाता हैयदि भूख पहले प्रदर्शन हो और बाद में

दर्शन बन जाय।

और अब तो ऐसा वक्त  गया है कि सच को भी सबूत के बिना

बचा पाना मुश्किल है।

 

 


Saturday, March 20, 2021

ज्ञानपीठ सम्मान - हिंदी लेखकों के नाम

ज्ञानपीठ सम्मान की शुरुआत भारतीय ज्ञानपीठ के संस्थापक साहू शांतिप्रसाद जैन की पचासवीं वर्षगाँठ पर 22 मई,1961 को की गयी थीज्ञानपीठ सम्मान भारत का सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान है | प्रथम ज्ञानपीठ सम्मान वर्ष 1965 में जी. शंकर कुरूप को प्रदान किया गया था | अब तक सर्वाधिक हिंदी के लेखकों को यह सम्मान प्रदान किया गया है, उसके बाद आठ कन्नड़ लेखकों को यह सम्मान दिया गया है | बंगाली मलयालम भाषा के लेखकों को पाँच-पाँच बार यह सम्मान प्रदान किया गया है |ज्ञानपीठ सम्मान भारतीय संविधान की आठवीं सूची में शामिल 22 भाषाओं के भारतीय लेखकों को प्रदान किया जाता है |ज्ञानपीठ सम्मान प्राप्तकर्ता को 11 लाख रुपये और ज्ञान विद्या की देवीसरस्वतीकी कांस्य प्रतिमा प्रदान की जाती है| वर्ष 1982 से पूर्व यह सम्मान लेखक की किसी एक कृति के लिए प्रदान किया जाता था, लेकिन उसके बाद से यह सम्मान भारतीय साहित्य में आजीवन योगदान के दिया जाने लगा |


Year

Jnanpith Award winners

Language

1968

Sumitranandan Pant

Hindi

1972

Ramdhari Singh Dinkar

Hindi

1978

Sachchidananda Hirananda Vatsyayan ‘Ajneya’

Hindi

1982

Mahadevi Varma

Hindi

1992

Naresh Mehta

Hindi

1999

Nirmal Verma

Hindi

2005

Kunwar Narayan

Hindi

2009

Amar Kant

Hindi

2009

Shrilal Shukla

Hindi

2013

Kedarnath Singh

Hindi

2017

Krishna Sobti

Hindi


Thursday, March 18, 2021

नामवर सिंह - आदत और तरकीब

''नामवर का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. उनके बाप तक ने उनका इस्तेमाल कर पाने में अपने को असमर्थ पा लिया है. इस्तेमाल से बचते रहना नामवर की आदत नहीं, तरकीब का हिस्सा है.''