सुदामा पांडेय 'धूमिल'
Tuesday, February 2, 2010
धूमिल पर ये आरोप लगता रहा है कि वे महिला विरोधी कवि है, और धूमिल इस बात को अपने कवितावों के माध्यम से हमेशा गलत साबित किया है। अपनी कवितावों में धूमिल में महिलाओं को एक अलग और सशक्त स्थान दिया है, फिर चाहे वो "आतीश के अनार सी वह लड़की " हो या फिर "घर में वापसी "। अपनी कवितावों में माँ, बेटी और पत्नी को जिस तरह से उन्होंने प्रस्तुत किया है वो अपने आप में कई सवालों का जवाब देती है। एक तरफ जहा वो बेटी की आँखों की तुलना मंदिर में दीवट पर जलते हुए घी के दीए से करते है, वही पत्नी की आँखों को ओ बस आँख नहीं मानते। उनके लिए ओ उस हाथ की तरह है जो उन्हें थामे हुए है। घर में वापसी धूमिल की एक ऐसी ही कविता है। उम्मीद करता हूँ की आप सब लोगो को धूमिल की ये कविता जरूर पसंद आयेगी।
घर में वापसी
मेरे घर में पांच जोड़ी आँखे है
माँ की आँखें पड़ाव से पहले ही
तीर्थ यात्रा की बस के/ दो पंचर पहिये है
पिता की आँखें
लोहसाय की ठंडी सलाखे है
बेटी की आँखें मंदिर में दीवट पर
जलते घी के/ दीए है
पत्नी की आँखें आँखें नहीं
हाथ है जो मुझे थामे हुए है
वैसे हम स्वजन है, करीब है
बीच के दीवार के दोनों ओर
क्योकि हम पेशेवर गरीब है
रिश्ते है लेकिन खुलते नहीं है
और हम अपने खून में इतना भी लोहा
नहीं पते
कि हम उससे एक ताली बनवाते
और भाषा के भुन्नासी ताले को खोलते
रिश्तो को सोचते हुए/ आपस में प्यार से बोलते
कहते ये पिता है/ यह प्यारी माँ है/ यह मेरी बेटी है
पत्नी को थोड़ा अलग/ करते- तू मेरी
हम बिस्तर नहीं............. मेरी हमसफर है।
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