सुदामा पांडेय 'धूमिल'

सुदामा पांडेय 'धूमिल'

Monday, October 7, 2019

कवि

कवि एक मजबूत बंकर है
जहा खाली वक्त में
तुम अपने जूते उतार सकते हो
बंदूक टेक सकते हो
मगर मत भूलो कि कवि एक खौलता हुआ
आंसू है। रक्त - सिक्त उत्तप्त
जिससे तुम अपनी ठिठुरी हुई करुणा
सेंक सकते हो

कवि एक लय है
थकान में गिरी हुई
क्या तुमने सुना ?
और तुम्हे खुशी है
मगर मत भूलो
कि कवि
व्यवहारिकता की
बटी हुई रस्सी से झूलती हुई
संवेदना की खुदकुशी है।

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