ओ, भाषावार हमलों
से हलकान मेरे भाई !
क्या तुम्हें अब भी
उसी पे भरोषा है,
जिसके अधिकार में
हमारी लिट्टी है,
चावल है,
इडली है
डोसा है ?
हाय! जो असली कसाई
है
उसकी निगाह में
तुम्हारा यह तमिल - दुःख
मेरी इस भोजपुरी - पीड़ा
का
भाई है
भाषा उस तिकड़मी दरिंदे
का कौर है
जो सड़क पर
और है
संसद में और है
इसलिए बहार आ !
संसद के अंधेर से
निकलकर
सड़क पे आ !
भाषा ठीक करने से पहले आदमी
को ठीक कर
#हिंदी_दिवस #हिंदी_कविता #धूमिल
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