९ नवम्बर को धूमिल के गाँव पे हर साल की तरह इस बार भी गोष्ठी का आयोजन किया गया. और मेरा इस बार भी खेवली जाना नहीं हुआ. प्रवीन यादव जी को धन्यवाद देता हूँ जिन्होंने मुझे मेल करके सूचित किया कि उनके पास धूमिल जी के जन्मदिन के कुछ फोटोग्राफ है और उन्होंने सारे फोटो मेल भी किये. ब्लॉग लिखने में और अपडेट करने में बहुत देर हुआ इसके लिए बहुत खेद है.
- ९ नवम्बर २०११ - एक शाम धूमिल के नाम
खेवली आज भी ९ नवम्बर को धूमिलमय हो जाती है
आप महसूस कर सकते है उनकी यादों को हर जर्रे में
यह ध्यान
रहे कि शब्द और शस्त्र के व्यवहार का व्याकरण
अलग-अलग है शब्द अपने वर्ग-मित्रों में कारगर
होते हैं और शस्त्र अपने वर्ग-शत्रु पर ।
रहे कि शब्द और शस्त्र के व्यवहार का व्याकरण
अलग-अलग है शब्द अपने वर्ग-मित्रों में कारगर
होते हैं और शस्त्र अपने वर्ग-शत्रु पर ।
कल वक़्त रुका कुछ बात हुई, आँखों से भी बरसात हुई
अनहद रोया फिर देखा सपनों में तुमसे बात हुई
(कन्हैया पाण्डेय: धूमिल के छोटे भाई )
एक तस्बीर जो धूमिल नहीं होती
नज़र पढने का हुनर उन्हें बहोत आता था
जिनकी तस्बीर नज़र से ओझल नहीं होती
(घिशन यादव: धूमिल के मित्र )
एक बेहतरीन कोशिश। धूमिल की रचनाएँ यहाँ होनी चाहिए।
ReplyDeleteप्रोत्साहन के लिए धन्यवाद, कोशिश जारी रहेगी..........
ReplyDeleteहसती है खेवली, मुस्काती है खेवली
ReplyDeleteधूमिल जी को याद करके आशु बहाती है खेवली